कहां जा रहा है मनुज
कहां जा रहा है मनुज
ना मस्ती ना हस्ती, ना राहें न मकसद…
ना रिश्ते ना नाते, ना अंतर ना शरहद…
दरिया है आगे पर बहे जारहे हो…
होकर मनुज भी कहां जारहे हो…
अबोली सी भोली सी छोटी सी गुड़िया,
सगा अपना रिश्ता या निरीह सी बुढ़िया..
क्यों पापी दरिंदो जुल्म ढारहे हो…
होकर मनुज भी कहां जारहे हो…
गीले पर सोकर, तुम्हें खुद पर सुलाया..
फटे जूते कपड़े, तुम्हें ब्रांडिड दिलाया..
क्यों देवों को बृद्धाश्रम पहुंचा रहे हो…
होकर मनुज भी कहां जारहे हो…
करो याद जब पास औहदा नहीं था..
बेकारी थी जीने का मसौदा नहीं था..
अब रिश्वत में धन और तन खारहे हो…
होकर मनुज भी कहां जारहे हो…
भारतेंद्र शर्मा “भारत”
धौलपुर, राजस्थान