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2 Jan 2023 · 1 min read

कहां छुपाऊं तुम्हें

हर कोई करना चाहता है प्रेम तुम्हें
क्या तुम ऐसे ही मान जाओगे
मर जाऊंगा मैं तो जीते जी ही
गर तुम अपना घूंघट उठाओगे

हो रहा है संदेह मुझे आज
है इस हवा नीयत भी ठीक नहीं
जाने कब छू लेगी तेरे होंठों को
तू तो उसे कुछ कहेगी भी नहीं

बैठा है वो तालाब भी
आज आस लगाए तुमसे
आओगे नहाने कभी तो
हसीं मिलन होगा तभी तुमसे

सूरज की किरणें भी आज
बार बार बादलों को है चीर रही
लोग तरसते हैं उसके लिए
वो आज तुझे छूने को तरस रही

कैसे बचाऊं मैं तुम्हें इन बादलों से
तुले हैं जो तुझे आज भिगोने पर
देख रहे हैं मौका कब तू बाहर आए
और वो धीरे से बरस पड़े तुम पर

कसूर नहीं है समंदर की लहरों का भी
जो आज मचल रही है ज़्यादा
नहीं जाएगी आज समंदर के नज़दीक तू
है कसम तुझे, कर मुझसे तू ये वादा

है इस चांद को भी इंतज़ार तेरा
इसे भी देखना है ये यौवन तेरा
पड़ी है छाया अमावस्या की इस पर
अब इसे भी तो चाहिए ये नूर तेरा।

Language: Hindi
11 Likes · 2 Comments · 938 Views
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