कहां छुपाऊं तुम्हें
हर कोई करना चाहता है प्रेम तुम्हें
क्या तुम ऐसे ही मान जाओगे
मर जाऊंगा मैं तो जीते जी ही
गर तुम अपना घूंघट उठाओगे
हो रहा है संदेह मुझे आज
है इस हवा नीयत भी ठीक नहीं
जाने कब छू लेगी तेरे होंठों को
तू तो उसे कुछ कहेगी भी नहीं
बैठा है वो तालाब भी
आज आस लगाए तुमसे
आओगे नहाने कभी तो
हसीं मिलन होगा तभी तुमसे
सूरज की किरणें भी आज
बार बार बादलों को है चीर रही
लोग तरसते हैं उसके लिए
वो आज तुझे छूने को तरस रही
कैसे बचाऊं मैं तुम्हें इन बादलों से
तुले हैं जो तुझे आज भिगोने पर
देख रहे हैं मौका कब तू बाहर आए
और वो धीरे से बरस पड़े तुम पर
कसूर नहीं है समंदर की लहरों का भी
जो आज मचल रही है ज़्यादा
नहीं जाएगी आज समंदर के नज़दीक तू
है कसम तुझे, कर मुझसे तू ये वादा
है इस चांद को भी इंतज़ार तेरा
इसे भी देखना है ये यौवन तेरा
पड़ी है छाया अमावस्या की इस पर
अब इसे भी तो चाहिए ये नूर तेरा।