‘कहाँ हो तुम’
कहां हो तुम
खो गए ना
दुनिया की भीड़ में
बसा लिया नीड़ नया
पलट कर देख तो लेते
राहों में फूल बिछे हैं
लौट आओ हमराही
प्रतिक्षा है तुम्हारी
समझो तो तुम
मेरा प्रेम
दिन बीत रहे हैं
सदियां भी बीत गई
कहाँ खो गई वो खुमारी
जो छाई थी इन नैनो में
आ जाओ अब बस…
कठिन है इंतजार तुम्हारा
ऐसा ना हो
कभी तुम पलटे
तो सिर्फ
धूल ही मिले राह में
ए हमराही—-
कहां हो तुम… कहां हो तुम…..!