कहाँ से चली आई तुम जिंदा लाशों की बस्ती में
कहाँ से चली आई तुम जिंदा लाशों की बस्ती में,
सब बापू के बंदर बने बैठे हैं आसों की बस्ती में।
आइना बेचने निकली हो तुम अँधों के शहर में,
सफेदपोश ही मिलेंगे तुम्हें बदमाशों की बस्ती में।
रहनुमा बने हुए हैं ये सारे धर्म, मजहब, जात के,
समाज के ठेकेदार मिलेंगे विनाशों की बस्ती में।
तुम क्यों चिराग जलाने की कोशिश कर रही हो,
हर रोज दिल जलते हैं इन अय्याशों की बस्ती में।
तुम्हारे शब्दों ने तीरों सा काम कर दिया है आज,
देखो मातम पसरा है इन अट्टहासों की बस्ती में।
चली जाओ वापिस तुम, तुम्हें उस खुदा का वास्ता,
जान लो कोई सुरक्षित नहीं है इन रासों की बस्ती में।
रोती फिरोगी फिर सुलक्षणा इंसाफ के लिए तुम,
कोरी बयानबाजी होगी इन दिलासों की बस्ती में।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत