कहाँ तू बिकेगा
जी भर के जिंदगी के हिस्से तेरे नाम लिखें
दो बूंद आसुंओं से यह किस्से तमाम लिखें
हम देँगे अपनी महफ़िलों का दौर यूँ सनम
कि तेरे लिए ये आसुंओ से भरें जाम लिखें
दर्द भी ये अब यूँ ये कहकर दवा देता हमें
कहाँ से तेरे लिए अपनी ये हंसी शाम लिखें
ऐ दिल तू मुस्कुरा कर बता इतनी सी बात
कहा तुझको चोट लगी,जो तेरे घाम लिखें
क्यो तू शीशे सा टूटकर चकनाचूर हुआ है
कहाँ तू बिकेगा कहाँ तुझको नीलाम लिखें
हम तो हुकुम का बादशाह ठहरे थे कभी
पिट गया बेगम से,खुद को गुलाम लिखें
अशोक सपड़ा हमदर्द
अशोक सपड़ा हमदर्द