कहाँ खोए हुए हो
कहाँ खोए हुए हो,
वक़्त फिसल रहा हाथ से रेत बन कर,
तुम किस उम्मीद में सोए हुए हो,
ख़्वाब कभी न बदलेंगे हक़ीक़त में इस तरह,
तुम कौन से सपने संजोये हुए हो,
जागो! अभी भी है वक़्त,
कहाँ खोए हुए हो,
भाग्य भरोसे रहने वाले, कभी न पाते मंज़िल अपनी,
आलस से असफलताओं को बोए हुए हो,
अपने कर्मों से घबरा कर रोए हुए हो,
जागो! अभी भी है वक़्त,
मानव कहाँ खोए हुए हो
उठो, और फिर से जुटाओ हिम्मत,
क्यूँ अवसाद और निराशा की गठड़ी
ढोए हुए हो,
फैंक डालो , इस जंजाल को,
भ्रमों के मायाजाल को,
आगे की सुध लो,क्यूँ सोए हुए हो,
अब कहना न पड़े कि तुम खोए हुए हो….