कहाँ -कहाँ दीप जलाएँ
कहाँ -कहाँ दीप जलाएँ
चहुँ ओर अँधेरा धाए
कहाँ कहाँ दीप जलाएँ
मन के अंधेरे को
दूर करने कितने दीप जलाएँI
कहाँ -कहाँ दीप जलाएँI
कुछ आडंबर, कुछ अंधविश्वास
की कालिमा दूर भगाएँI
कहाँ -कहाँ दीप जलाएँ
लोगों द्वारा फैलाए
भ्रम के अंधेरे छाए
मन के विश्वास के
तेज उजाले से
अंतर्मन के अंधेरों
को दूर भगाएँI
वहाँ-वहाँ दीप जलाएँ
उजाले में उजाला लाएँ
क्योंकि सिर्फ दीपों का ही नहीं
त्यौहार है दीवाली
बल्कि मन के अँधेरों को
भगाने का भी त्योहार है दीवालीI
मन के भावों में
मधुरता लाएँ
उत्साह की आभा चमकाएँ
वहाँ – वहाँ दीप जलाएँ
दीवाली के अवसर पर
मिठास की मिठाई बनाएँ
कोई शब्द किसी को न चुभेI
ऐसी चाशनी बनाएँ
आओ! वहाँ -वहाँ दीप जलाएँI
– मीरा ठाकुर