कहाँ आ गए हम
ये कौन सी मंजिल,कहाँ आ गये हम.
धरा है या क्षितिज,जिसे पा गये हम.
ज़िंदगी के इस मोड़ पे मिले हो तुम,
सारा जहाँ छोड़,तुम्हें भा गये हम.
उतरते रहे रुह में कुछ इस तरह,
चेहरे ही नही साँसों में छा गये हम.
इश्क का जज्बा देखा उन अश्कों में,
समन्दर सा सैलाब आँखों में ला गये हम.
है असर कुछ यूँ इश्क का हम पर,
दूरियां भी नजदीकियों में ला गये हम.
टूटी माला सी बिखरी थी अब तक यूँ,
पाकर तुम्हें अपनी मंजिल पे आ गये हम.
शिकवा ना शिकायत, बस इतना सा फसाना,
“आरती” बन तुम्हारी लौ पा गये हम.
©® आरती लोहनी