कहमुकरी
ध्यान करूँ मैं उसका हरपल,
वह करे सर्वदा बुद्धि विमल।
भावों का वह अमित प्यार दे,
क्या सखि साजन? नहीं शारदे।।1
उसका रूप अनोखा प्यारा,
मम जीवन का वही सहारा।
उसे न भाए दुनियादारी,
क्या सखि साजन? नहिं त्रिपुरारी।।2
तेज प्रतापी वह बलशाली,
मन में उसकी मूर्ति बसा ली।
वह संकट का करता अंत,
क्या सखि साजन? नहिं हनुमंत।।3
उस पर अपना सब कुछ वारूँ,
हर पल उसका नाम पुकारूँ।
वह है मेरे दुख का संगी,
क्या सखि साजन? नहिं बजरंगी।।4
करे खूब वह हँसी ठिठोली,
खुशियों से भर देता झोली।
उस पर जाऊँ मैं बलिहारी,
क्या सखि साजन? नहिं गिरधारी।।5