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9 Aug 2017 · 1 min read

कहने को शर्मीली आँखें

झील सी’ गहरी नीली आँखें
हैं कितनी सकुचीली आँखें

प्रेम अगन सुलगाने को तो
हैं माचिस की तीली आँखें

खो देता हूँ सारी सुध बुध
उसकी देख नशीली आँखें

यादों के सावन में भीगीं
हो गईं कितनी गीली आँखें

मोम बना दें पत्थर को भी
छोटी सीली सीली आँखें

राह तुम्हारी तकते तकते
हो गईं हैं पथरीली आँखें

गम तो है वैसे का वैसा
रोतीं खाली-पीली आँखें

बढती बेलें देख के’ अपनी
होतीं हैं गर्वीली आँखें

सब कुछ कहतीं, सुनतीं, पढ़तीं
कहने को शर्मीली आँखें

Language: Hindi
311 Views
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