कहते हैं सब प्रेम में, पक्का होता आन।
कहते हैं सब प्रेम में, पक्का होता आन।
दुवा यही भगवान से, मिले मुझे यह ज्ञान।।//1
जहाँ अल्प से कार्य हो, भूल अधिक की बात।
संसाधन उपयोग में, सजग रहो दिन रात।।//2
पशु-पक्षी की लालसा, ज़रूरतों अनुसार।
मूर्ख मनुज संचय करे, लिए फिरे जग भार।।//3
दुरुपयोग करना बड़ा, होता है अपराध।
सदुपयोग हर चीज़ का, पूर्ण करे मन साध।।//4
मेरा-मेरा जो कहे, निज रब से अनजान।
दाना नहीं नशीब हो, चाहे जब भगवान।।//5
इंसान वही मोहसिन, करे सभी से प्रेम।
होता है शैतान वह, चुने स्वार्थ के ग़ेम।।//6
झूठ दाद मत दीजिये, खोलेगी यह पोल।
पोल खुली जिसकी यहाँ, जीवन उसका गोल।।//7
आर.एस. ‘प्रीतम’