कसक
जब अपने
अपने न रहे
तो उठती है
कसक दिल में
करते हैं वादे
निभाने साथ का
छोड़ जाते साथ
बीच मंझधार में
कसक उठती है
दिल में
हैं
धोखेबाज लोग
करते नहीं
इज्जत प्यार की
उठती है कसक
दिल में
करती
माँ
चिंता
जिन्दगी भर
औलाद की
होता नहीं
वक्त उसके
दुःख दर्द में
साथ रहने का
औलाद को
होती कसक
दिल में
प्राण न्योछावर
करते देश
के लिए
प्रेम देश से
सराबोर
है वो
ज़वान
पर
करते
कालाबारी
घोटले
भ्रष्टाचार
गद्दारी
देश से
तो उठती
कसक
दिल में
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल