कसक भेद की
साथी भेद छिपा ना कोई,
छोटा सा जीवन है सब का,
बेल दुखो की बोई, साथी भेद छिपा ना कोई l
अभेद बनाना भेद को चाहा,
मन दीवाना होई, साथी भेद छिपा ना कोई l
दिल मे पहले दर्द उठा था,
क्रोध से आग बुझाई, साथी भेद छिपा ना कोई l
अभेद बनाके भेद करे ऐसा,
दर्द की दवा पिलाई, साथी भेद छिपा ना कोई l
दर्द गया पर कसक रह गई,
आँख छिपा कर रोई, साथी भेद छिपा ना कोई l
थक गया जीवन कसक को सहते,
पर मन से याद ना खोयी, साथी भेद छिपा ना कोई l
राह ढूँढता फिरे “संतोषी” क्या कुछ युक्ति होई,
भेद पछना दूर रहा तो वफ़ा से भर दी बेवफाई l
साथी भेद छिपा ना कोई ll