कश्मीरी पंडित
सार छन्द
पंडितो की व्यथा
कश्मीरी पंडित की तुमको, आज व्यथा बतलाएं।
उनके दुःख दर्दों का तुमको, हम एहसास दिलाएं।
इतिहासों में पढ़ी हुई लोगों की सुनी जुबानी।
चार लाख पंडित की है, दर्द भरी सी कहानी।
जनवरी वाली रात में वो, लगा रहे थे बोली।
बदलो धर्म पंडितों अपना, नही चलेगी गोली।
कश्मीरी घाटी में मुस्लिम, रहते थे अभिमानी।
बहु बेटियों के संग करते, थे अपनी मनमानी।
नन्हें-नन्हें मासूमों की, हत्या वो कर डालें।
निर्दोषों को पकड़ पकड़ वो, करते मौत हवाले।
हाँफ रहे जो वृद्ध पिता माँ, उनको सदा सताते।
नहीं एकता थी हिन्दू में, कैसे उन्हें बचाते।
मूक खड़े हुए देख रहे थे, हिन्दू हिंदुस्तानी।
उन्हें बचाने की हिम्मत अब, नही किसी ने ठानी।
आँसू भर आते हैं मेरे, जब सोंचू बात पुरानी।
ठंडी हवाओं से घाटी में, हमने सुनी कहानी।
अभिनव मिश्र”अदम्य