” कश्ती रूठ गई है मुझसे अब किनारे का क्या
” कश्ती रूठ गई है मुझसे अब किनारे का क्या
हाथों में सिर्फ लकीरें बची है अब सहारे का क्या ”
© डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया
” कश्ती रूठ गई है मुझसे अब किनारे का क्या
हाथों में सिर्फ लकीरें बची है अब सहारे का क्या ”
© डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया