कश्ती को साहिल चाहिए।
पेश है पूरी ग़ज़ल…
कश्ती को साहिल चाहिए।
जिदंगी को हासिल चाहिए।।
सफर को मंजिल चाहिए।
जीने को मुस्तकबिल चाहिए।।
रहमते खुदा नाजिल चाहिए।
हर मांगी दुआ कामिल चाहिए।।
इश्क को रूहे दाखिल चाहिए।
यार सुख दुख में शामिल चाहिए।।
कारोबार में काबिल चाहिए।
मुकम्मल दीन को आलिम चाहिए।।
इंसाफ को आदिल चाहिए।
रिश्तों निभाने को आकिल चाहिए।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ