*”कशमकश”*
कशमकश
जीवन की इस आपाधापी कशमकश में,
वक्त ना जाने कहाँ ,क्यों गुम सा गया है।
भागमभाग दौड़ती हुई जिंदगी में,
चलती हुई रफ्तार से जाते हुए अचानक से थम सा गया है।
पहले दो घड़ी गुजारने को समय नही मिलता था।
अब हर पल वक्त एकांतवास में बैठे हुए,
वक्त नही गुजरता है।
जिंदगी के कुछ हसीन पलों को ,परिवार के संग बीता रहे हैं।
इधर उधर भटकता बैचेन सा मन क्यों न जाने खोया हुआ है।
मन की शांति की खोज में तलाशता फिरता सा है।
मोहमाया के जाल में बंधकर अदभुत लीलाएं रचाता है।
तेरा मेरा क्यों करता रे मानव जीवन में ,
खाली हाथ एक न एक दिन चले ही जाना अकेला है।
धरती आकाश स्वछंद हवाओं में,
सभी कुछ यही धरा का धरा रह जाना है।
शशिकला व्यास✍️