कवि
मैं कवि नहीं कवि बनने में अभी तो बहुत कसर है
जो भी लिखता हूं ये आपकी दुआओं का असर है
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मैं अपने माता पिता गुरू ईश्वर का वंदन करता हूं
और सच को सच लिखने में मैं कभी नहीं डरता हूं
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हमारे सारे समाज का एक कवि आईना होता है
अन्तर्मन के भावों को पढ़के के शब्दों में पिरोता है
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पर कुछ लिखने वालों के मन में कितना गरूर है
आजाद बताओ उनको कवियों के घर बहुत दूर है