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9 Dec 2017 · 1 min read

कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।

कवि हूँ लिखता पढता हूँ
मन के संवेदन को पढता हूँ ।
मूक भाव को समझ लिपि संग
मूर्त भाव दे गढता हूँ ।
कवि हूँ लिखता पढता हूँ
कभी समय पा पुनः यादकर
सही सीख ले बढता हूँ
कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।
मन के भाव जुबां तक आए
ऐसे चिंतन करता हूँ ।
कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।

Language: Hindi
1 Like · 466 Views
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