कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।
कवि हूँ लिखता पढता हूँ
मन के संवेदन को पढता हूँ ।
मूक भाव को समझ लिपि संग
मूर्त भाव दे गढता हूँ ।
कवि हूँ लिखता पढता हूँ
कभी समय पा पुनः यादकर
सही सीख ले बढता हूँ
कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।
मन के भाव जुबां तक आए
ऐसे चिंतन करता हूँ ।
कवि हूँ लिखता पढता हूँ ।