कवि हूँ मै …
कवि हूँ मै, तुम्हारी ही
धुंदलिसि छवि हूँ मैं
जैसा दिखा वैसा लिखा
हूँ वास्तवदर्शी आईना
कवि हूँ मै,आनेवाली
अगली कड़ी हूँ मैं
जो भी अच्छा लगे बुरा लगे
भला लगे या ,लगे बड़ा प्यारा
कवि हूँ मै जलनेवाली
तपती कढ़ाई हूँ मैं
सच की लड़ाई , झूठ का पर्दापाश
ढेर सारा प्यार कभी उपहास हूँ मैं
कवि हूँ मै दुःख का दरिया हूँ
प्यार दुलार का समंदर हूँ बेशक
राजसत्ता का नहीं हूँ केवल प्रशंसक
तानाशाही को जड़ से उखाडने का हुनर भी हूँ
कवि हूँ मै प्यारीसी छवि हूँ मैं
सुंदरता का दूसरा रूप दिखाता
ऊँचे – ऊँचे परबत , खेत खलियान
झील झरने किनारे नाचनेवाला मयूर
कवि हूँ मै हर दिल की धड़कन
अजबसी तड़पन , बेरुखी भी हूँ
नन्हे से बालक की किलकारियां
ईथर उधर बिखरी पड़ी हूँ खुसी
कवि हूँ मै , अजबसि छवी हूँ
मुज़मे हैं वो सब राज दफ़्न आजभी
मुझे साफ साफ दिखती हैं जन्नत
धुंदलीसी और आज का जहांन्नुम भी