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21 Sep 2024 · 2 min read

कवि प्रकृति के विपरीत है…!

कविताऐं नेताओं के भाषणों की तरह लंबी नहीं होती और ना ही स्कोलर लोगों की डिबेट की तरह शांत होती। वास्तव में कवि प्रकृति के विपरीत होता है, क्योंकि जहाँ प्रकृति अपने हर शब्द को बहुत विस्तार देती है वहीं कवि उनको समेट देता है। इन्ही सब को देखते हुए एक कवि किसी भी मंच पर ज्यादा देर तक नहीं रुक पाता क्योंकि वो अपनी दस-पंद्रह पंक्तियों में ही सब कुछ कह चुका होता है। इसलिए कविता लिखना जितना मुश्किल है उससे कहीं ज्यादा मुश्किल कविता सुनना है क्योंकि श्रोता को कविता की पंक्तियों में अपने लिए अर्थ तलाशना है और वह अर्थ पूरे ब्रह्मांड में बिखरा पड़ा है उससे कहीं ज्यादा कवि के हृदय में जिसने पता नहीं क्या सोच कर लिखा। कहानीकार और उपन्यासकार फिर भी पाठक को समझा बुझाकर अपना उद्देश्य बता देता हैं उसको मूल अर्थ तक खींच ले जाता है किंतु कवि पाठक को या स्रोता को वहीं छोड़ देता है, वह अपनी जिम्मेदारी दस पंद्रह पंक्तियां लिखकर समाप्त कर देता है, अब वहाँ तक पाठक हो श्रोता को खुद ही रास्ता तलाशना होता है और ज्यादातर तलाश नहीं पाते लौट आते हैं इसलिए कविता मुश्किल हो जाती है। इसलिए वर्तमान समय में कविताएं उतनी कठिन नहीं रही तो उतनी गूढ़ रहस्य की भी नहीं रही अब उनमें भी गीत गानों की तरह लय है राइम है ध्वनि है। इसलिए गीत आसान होते है सुनने लायक होता हैं मगर कविताएं कठिन और कर्णप्रिय भी कम ही होती हैं, और सबसे बड़ी बात श्रोता कविता सुनने के लिए जितनी देर में खुद को तैयार करता है कवि उससे पहले ही अपनी कविता पढ़कर मंच छोड़ चुका होता है, अब वह समझने की कोशिश भी करे तो कैसे क्योंकि बगल वाले कि भी यही स्थिति है और यही प्रश्न कि “इसने क्या कहा, कुछ समझ तो आया नहीं”।
इसलिए कविता सुनने के लिए श्रोताओं को गिटार के तारों की तरह सजग होना पड़ता है जो हल्का सा स्पर्श होते ही जिस्म में संगीत के रौंगटे खड़े कर देते हैं। इसके बाद यह कहना जरूरी है कि कला जितना मनोरंजन है उससे कहीं ज्यादा जीवन की अभिव्यक्ति है, जीवन का दर्शन है, ब्रह्माण्ड की इस दृश्य और अदृश्य शब्द एवं कल्पनाओं का मिश्रण हैं, जो दिमाग और दिल को झकझोरती है, नई समझ देती है और नई परिभाषा भी गढ़ती है और अगर ऐसा नहीं है तो फिर आप उस कला को नहीं समझ पाए…!!!

prअstya……….💐

Language: Hindi
Tag: लेख
23 Views
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