*** कवि तेरी क्या कामना ***
कवि तेरी क्या कामना,हुआ जो आमना-सामना ।
देखा उसने हमें इस तरहा,जैसे हो सामने बालमा।
कवि .. ..सामना।
पहले-पहल नजरें मिलाई,फिर उसने पलकें गिराई।
धीरे-धीरे यूँ मुस्काई,जैसे कोई नव कली । कवि……. ……सामना । हाथों से अपना चेहरा छुपाया,
फिर गले से हमन यूँ लगाया ।
सवेरा जब हुआ..लिपटे थे बाँहों में
फिर दर्द को मेरे .हमदर्द ने अपनाया । ..
कवि…. ….सामना।।
?मधुप बैरागी