कवि के उर में जब भाव भरे
तोटक छंद
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कवि के उर में जब भाव भरे,
कविता बन के हर घाव झरे।।
कवि व्योम विचार घना रहता,
निज छंद उगा कविता लिखता।
कवि स्वप्न सदा बुनता रहता,
खुद ही खुद को धुनता रहता।
कवि कंठ सदा सुर शब्द बसा,
दृग यौवन बाल भविष्य हँसा ।
चिर नूतन वृद्ध अतीत दशा,
करुणामय गीत सुगंध नशा।
उर में अनुभूति अनंत लिए,
बरसा मधुमास बसंत लिए।
कवि कौशल काव्य समर्थ लिए,
हर शब्द गहे कुछ अर्थ लिए।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली