कवि की आदत और हास्य-व्यंग्य.
सफर मे दो ही क्यों हमसफर अनेक होते है.
एक बार सफर में दो अनजान सवारी.
एक “दो वाली” सीट पर बैठे थे सफर कर रहे थे सफर लम्बा था.।
अतः दोनों में एक साथ जिज्ञासा जागी.
क्योंकि दोनो कवि थे ??
वैसे अनजाने थे ।।?
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क्यों ना परिचय हो जाये.।?ऐसा सोचा.।
एक ने पूछा क्या काम करते हो भाई.।
दूजे ने कहा.।
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मैं कवि हूँ.।
और आप.।?
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दूसरे को जबरन कहना पड़ा.।
बोला जी मै तो बहरा हूँ.।?
कभी कभी सुनता है.।?
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जैसे आंकल बोले.
शेर.।भघेरे.।आदि-आदि.।
फेर मैं…भागने की कोशिश करता हूँ .।
कभी कभी..तो जब मैं किसी कवि को सुनता हूँ?
तो भी.।
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आखिर कहना पडा.।?
कोई बात ना बैठा रह.।
मै कवि था.।?
इब तो बिना टिकट का यात्री सूँ.।?
याले फ्लाइंग भी आ गई.।?
तेरा पीछा.।छूट जावेगा.।???
ये साथ ले जावंगे.।???
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“जीवन एक अभिव्यक्ति” के प्रोमोशन में ???
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डॉ. महेंद्र.