कवि का धर्म,
कविता में आंसू हो या मस्ती की शाम हो,
जिंदगी किसकी रहे भाव किसके नाम हो,
अब तो दीवार इस बात पर उठ जाती है,
जैसे किसी दुश्मन से दुश्मनी खुलेआम हो,
कवि क्यों धर्म लिंग जाति में बंट जाता है,
कुछ कवियों में कुछ खास नजर आता है,
अब तो दरोदीवार गिराओ सब नफरत की,
कविता यदि जिंदा है तो सारा जहां आता है,