कवियों की सरकार
रेत की दीवार कवियों की सरकार
घनाक्षरी छंद रूपक अलंकार
कवियों की सरकार बना रहे थे गुरु जी,
बनी या कि शेष भाग कुछ बचा काम का।
क्या बताएं यार ना संतुष्ट कोई दिख रहा,
हंगामा मचा हुआ है पीएम के नाम का।
कई दावेदार गुटबंदी के शिकार हुए,
समझाओ नाम नहीं लेते हैं विराम का।
सरकार बनाना कठिन ऐसे लग रहा,
अयोध्या में मंदिर बनाना श्रीराम का।
बैरागी दादा तैयार गफ्फार भी है तैयार,
मनवीर माना शेष को न इंटरेस्ट है।
खुन्नस में सब मेरी खोपड़ी ख़राब हुई,
किस नाम को करें कहां पै एडजेस्ट है।
सब को संतुष्ट करें एक सूत्र में पिरोंयें,
किस किस से करें कहां लौ रिक्वेस्ट है।
बिना बहुमत सरकार ना बनाएं हम,
देशहित देख निर्णय यही बेस्ट है।
गुरू सक्सेना नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)