कवित्य
[ प्रीत न करने थी ]
जब से रिझाया दिल इश्क ने फसाया यार ।
ऐसी चाहत तुझे कभी नहीं भुलाने थी ।।
कर दी कुर्बान जान मेरी ऐ जवान यार ।
मेरी आशिकी पर सितम नहीं ढ़ाने थी ।।
कहता जहाँ किसी को दोष न लगा यार ।
जो लिखा नसीब में कभी नहीं टरने थी ।।
कुल का दुलारा था मात प्यारा यार ।
रहना था नियारा तो प्रीत नहीं करने थी ।।
शेख जाफर खान