कवित्त
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एक बात है
हृदयों में
चाहों में
पर कैसे कहूं ?
मैं खुद-ब-खुद
असमंजस
बरकरार इस
तलक तक
याद नहीं
बेकसूर थे
हम कभी
या अभी-अभी…..!
अंतर्द्वंद्व है
ईच्छा भी
पर पूछूं क्या ?
किससे और कहाँ
कैसे या क्यों
किसके या परन्तु
किसके लिए न….
हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ
हैं कौन
याद नहीं
पर बात है
कसर-सी
है किन्तु
रहस्यमयी और
अश्रुपूर्ण ये तलक
गहराईयों के तह तक।
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