कविता _भारत के कवियों की गाथा
सिंहासन सारा हिल जाये,
ललकार कभी जो सुन जाती।
अन्याय-ज्यादती मुहँ फेरे,
हों बन्द तो,आँखे खुल जाती।।
हक की आवाज़ जो उठ जाती ,
धुन लगती छन्द बनाने की।
उमड़ पड़ी सरगम सरिता
कवियों की गाथा गाने की।।
अनन्य उपासक, श्रीराम के,
तुलसीदास जी संत हुये।
बस गया सौंदर्य अन्तर्तम में
प्रकृति प्रेमी ‘पंत’ हुये।।
देशप्रेम और राष्ट्-एकता,
जिसने शब्दों में उकेरा था।
राष्ट्र कवि की मिली उपाधी,
‘दिनकर’ नाम भतेरा था।।
प्रखर थे विद्वान जो ठहरे,
पर पत्नि में अति आसक्त हुये।
लिख डाले उम्दा महाकाव्य,
‘कालिदास’ शारदे के भक्त हुये।।
बादल राग और अनामिका,
लिखे गये थे काव्य नये।
सफल प्रहरी मुक्त छन्द के,
नाम निराला’ गढ़े गये।।
नारी शक्ति की दिव्य स्वरूपा,
महादेवी वर्मा नाम गहा।
मैं नीर भरी दुख की बदली,
लब पे था जिसके गीत बहा।।
विरक्त हो गयी दैहिक सुखों से,
त्रिलोकी से प्रीत लगाई थी।
अमिय बना, गरल का प्याला,
मीरा की जान बचाई थी।।
सूरदास जो सखा बन गया,
द्वापर के अवतारी का,
लिख डाली, बाल सुलभ अठखेली,
किया चित्रण, कृष्ण मुरारी का।।
शायर देव मेहरानियां
अलवर राजस्थान