~* कविता *~
. ~= कविता =~
बहुत याद आती है
मुंडेर वाली लड़की
*************
वो उसका हल्की सी धुप में, बालो का सुखाना ,
ज़ुल्फो की झीनी खिड़कियों से, हमे झांकना ,
और फिर ज़ुल्फो को झटक,नज़ाकत से मुड जाना ,
कितनी बड़ी अदाकारा थी, वो मुंडेर वाली लड़की l
वो उसका नगें पांव, धुप में तिलमिलाना ,
हरेक कपड़े को कई कई बार पलटना, सुखाना ,
कपड़ो की आड़ से , हमे ताकना, छुप जाना ,
कितनी शर्मीली थी, वो मुंडेर वाली लड़की l
घंटो चाँद को बस यूँ हीं, ख़ामोशी से निहारना ,
तारों की गिनती, टूटते तारों की आस लगाना ,
बेसुध बेखबर मेरी खिड़की पर, नज़रे गड़ाना ,
कितनी पागल थी, वो मुंडेर वाली लड़की l
किसने सोचा था, होगा किस्मत का कहर बरसाना ,
वो कहारों का,कराहती सिसकती डोली का लेजाना ,
विदाई के आंसूओं में , अरमानों का बह जाना ,
कितनी बड़ी सज़ा दे गई, वो मुंडेर वाली लड़की l
* किरण पांचाल *