कविता
इतराती बलखाती पनघट को जाती शीश गगरिया थाम।
गागर धर मटकाय कमर,सब देखें टुकुर टुकुर अविराम।
गज गामिनी पग धरे ज्यों,नटिनी की चाल।
प्रिय हिय में तड़प उठी,पूछो जा कोई हाल।
पनिया भरते चंचल से नैना साँवरिया से लागे।
नैन लगा दिया चैन गंवा,दिन रैन अंखियां जागें।
लाज शरम चुनर में लिपटी,लब मृदुल मुस्कान बिखरी।
गाल गुलाबी रंग से निखरे, सखियों को बात यहअखरी।
दन्त छवि घूघट पट से चमके हँस हँस करे मखोल।
लगे ऐसे ज्यों शुभ्र खग दल पंक्ति में,करें मधु किलोल।
सुंदरी साँवरि भरी अंजन अंखियां, हों ज्यूं काले घन।
अंग -प्रत्यंग चंद्र सम आभा,डोले बलम हृदय- मन।
भोर किरण देख मुस्काती और विहल्ल सुरमई शाम।
मेंहदी हाथ,पांव रचा अलता, चूड़ियां रहीं कलाई थाम।
हरित वसुधा सजी फसलों से, हुए पावन धन्य ग्राम।
स्वच्छ हवा,परिवेश गुंजित मधुर कलरव अभिराम।
सुन नीलम तू भी उन्मुक्त गगन में भर स्वच्छंद उड़ान।
दिल की धड़कन कहती तू भी अपने कर पूरे अरमान।
नीलम शर्मा