#कविता-
#क्रोध_की_कविता-
■ और कितने बलिदान…?
★ देश की बात, तंत्र के साथ
【प्रणय प्रभात】
शर्म एक दिन कर लेते तुम जश्न मनाने से।
शर्म आज तो कर लेते सम्मान कराने से।।
झूठी वाह-वाह के आदी रसिया ताली के।
आज मुझे हक़दार लग रहे केवल गाली के।।
थोथे सपनों के सौदागर वादों के गायक।
मातम बीच सभाएं करते देखो अधिनायक।।
लाज-मुक्त हैं ग्लानि-रहित भी सत्ता के साथी।
फ़र्क़ पड़ेगा खाक़ इन्हें ये हैं सफ़ेद हाथी।।
पात्र नहीं स्वागत के सब लायक़ हैं तानों के।
असली हत्यारे ये ख़ुद हैं वीर जवानों के।।
आंखों में है लहू पीर से फटती छाती है।
व्यग्र हृदय को नहीं कोई सौगात सुहाती है।।
संप्रभुता के शौर्यदीप की लौ मत मंद करो।
लोकतंत्र के झूठे नाटक कुछ दिन बंद करो।
सजा-सजा कर झूठी झांकी रोज़ न इठलाओ।
मेरी चाहत है मेरी बातों को झुठलाओ।।
मद को छोड़ो हद को त्यागो सरहद पार करो।
पत्तों शाखों तने नहीं अब जड़ पर वार करो।।
धरती के स्वर्ग की रक्षा के लिए असमय स्वर्गवासी बन रहे जवानों के बलिदान की अनदेखी कर कोरी बातें करने वाले तंत्र को धिक्कार सहित एक समयोचित सलाह।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)