कविता
मैं उसे बताना चाहती थी कि
नागफणियों में फूल आते हैं
विषधर प्रेम करते हैं
सूखे पेड़ों पर काई खिलती है
सफ़ेद आभा के मूल में समस्त रंग होते हैं
टूटे हुए घोंसलों में घर बनाते हैं कुछ पक्षी
खंडहर में आहट होती है, रौशनी पहुँचती है
फटी हुई किताब से नया कागज़ बनता है।
टूटी पत्तियों के नीचे अखुए निकलते हैं
और ये भी कि, “नाश के दुख से निर्माण का सुख नहीं मिटता।”
किंतु मैं ने उसे बताया
कि विषधर अपने बच्चे खा जाता है
बताया कि सूखे पेड़ पर उगी काई भी बरसात के बाद सूख जाती है
अधिकतर घोंसले टूट कर दोबारा घर बनाने लायक नहीं बचते
खंडहरों की आहट भयानक और रौशनी डरावनी होती है
फटी हुई किताब कभी भी पूर्ववत नहीं हो सकती
गिरी हुई पत्तियाँ एक दिन सड़ जाती हैं।
और निर्माण का सुख अपने साथ ही लाता है नाश का क्रूर भय भी…!
© शिवा अवस्थी