Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Feb 2024 · 1 min read

कविता

ठंड का मौसम
सिकुड़न और ठंड का मौसम अब आया
प्रात:काल ओस ने कब्जा जमाया।
सूरज की किरणें लगने लगे प्यारी
फूल,सब्जियां फैली हरियाली क्यारी।
चाय की प्याली और गर्म-गर्म भोजन
छूकर के शीत जल सिहर जाए तन-मन।
मां बहन तत्पर हो करती हैं सेवा
साफ स्वच्छ घर आंगन रुचिकर कलेवा।
ठंड का स्वागत करते हैं त्यौहार
चेहरे पर मुस्कान फैली खुशियां अपार।
साधु संत सन्यासी निकले हैं बाहर
बीते चतुर्मास हुई भक्ति उजागर।
गृहणी संत पुरुषार्थी ठंड से न डरते
शरद हेमंत शिशिर सबका स्वागत करते।
नव युवा जीवन के सपने सजाते
कुछ लक्ष्य पर जाते कुछ नवगीत गाते ।
सबने ही मौसम को ताज पहनाया
सब खुश हुए ठंड का राज आया।
नमिता शर्मा

Language: Hindi
65 Views

You may also like these posts

मन्नत के धागे
मन्नत के धागे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
तुमसे इश्क करके हमने
तुमसे इश्क करके हमने
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
चिराग़ उम्मीद का जलाया न होता,
चिराग़ उम्मीद का जलाया न होता,
Jyoti Roshni
*कोई जीता कोई हारा, क्रम यह चलता ही रहता है (राधेश्यामी छंद)
*कोई जीता कोई हारा, क्रम यह चलता ही रहता है (राधेश्यामी छंद)
Ravi Prakash
मानवता का है निशान ।
मानवता का है निशान ।
Buddha Prakash
"कलम की अभिलाषा"
Yogendra Chaturwedi
4690.*पूर्णिका*
4690.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
फिर कब आएगी ...........
फिर कब आएगी ...........
SATPAL CHAUHAN
मुक्तक 4
मुक्तक 4
SURYA PRAKASH SHARMA
सद्विचार
सद्विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मेरे शब्दों को कहँ दो ...
मेरे शब्दों को कहँ दो ...
Manisha Wandhare
ज़िंदगी तेरा
ज़िंदगी तेरा
Dr fauzia Naseem shad
◆बात बनारसियों◆
◆बात बनारसियों◆
*प्रणय*
बचपन
बचपन
Rekha khichi
दोहे
दोहे
गुमनाम 'बाबा'
यदि आपका दिमाग़ ख़राब है तो
यदि आपका दिमाग़ ख़राब है तो
Sonam Puneet Dubey
गीतिका और ग़ज़ल
गीतिका और ग़ज़ल
आचार्य ओम नीरव
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
भँवर में जब कभी भी सामना मझदार का होना
अंसार एटवी
इश्क तू जज़्बात तू।
इश्क तू जज़्बात तू।
Rj Anand Prajapati
**ये गबारा नहीं ‘ग़ज़ल**
**ये गबारा नहीं ‘ग़ज़ल**
Dr Mukesh 'Aseemit'
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
नीचे तबके का मनुष्य , जागरूक , शिक्षित एवं सबसे महत्वपूर्ण ब
Raju Gajbhiye
Acrostic Poem- Human Values
Acrostic Poem- Human Values
jayanth kaweeshwar
न जाने  कितनी उम्मीदें  मर गईं  मेरे अन्दर
न जाने कितनी उम्मीदें मर गईं मेरे अन्दर
इशरत हिदायत ख़ान
मालूम नहीँ
मालूम नहीँ
Rambali Mishra
मीठी वाणी
मीठी वाणी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
वो कैसा दौर था,ये कैसा दौर है
वो कैसा दौर था,ये कैसा दौर है
Keshav kishor Kumar
इसी कारण मुझे लंबा
इसी कारण मुझे लंबा
Shivkumar Bilagrami
" प्रेम "
Dr. Kishan tandon kranti
मै उन्हें  क्यूं ना चाहूँ, जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर चलना
मै उन्हें क्यूं ना चाहूँ, जिन्होंने मुझे ऊँगली पकड़ कर चलना
Neelofar Khan
अर्चना की वेदियां
अर्चना की वेदियां
Suryakant Dwivedi
Loading...