कविता
वन्देमातरम का गीत गुनगुनायेंगे।
हिन्दकीजमीं से असमां हिलायेंगे।
कितने पुष्पशीष जमींदोज़ हो गये
कितने अश्कमोती अंधेरों में खो गये।
खून की इबादतों को जो न गायेंगे
जा के जमीं से उन्हें क्या मुँह दिखायेंगे।
कितने पुण्य कर्मों से हमे ये तन मिला
कितने तन फ़िदा हुये तो ये वतन मिला।
त्याग और तपस्या को जो हम भुलायेंगे
बेवफ़ा मातृभू के हम कहायेगे।
जिम्मेदारियाँ हमारे कंधो पर बड़ी
शत्रु की नजरआज भीहैअढ़ी ।
फ़र्ज राष्ट्र के प्रति हम भी निभायेंगे
देशभक्ति विश्व को तबहम सिखायेंगे।
नमिता शर्मा