कविता
श्री माँ सरस्वती जी की वंदना
सरस्वती कृपालु मातृ दिव्य लेख साधिका।
कृपा बनी रहे सदा सुलेख रम्य राधिका।
चले ममत्व लेखनी विराट व्यास पीठ दो।
सुगंधनीय पुष्प वृष्टि से हृदय किरीट दो।
रहे सदैव पुस्तकीय धारणा विचार में।
चलो सदैव हंस संग भक्त की पुकार में।
अदा कभी विदा न हो सुलेखनी बनी रहो।
विराजमान हो हृदय ललित मधुर वचन कहो।
फलित कला शुभग सदा सहज सतत दिखाइये।
पढ़े सदैव आप से सुजान प्रिय बनाइये।
रहे सदैव विज्ञता सहानुभूति चाहिए।
सुमंगली स्वरूप में सुगीत नित्य गाइए।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।