कविता
रंगीन मन (स्वर्णमुखी छंद )
मापनी: 221 221 221 22
रंगीन मन की यही कामना है।
सब के हृदय में मृदुल भावना हो।
मिटती दिखे मानसिक वासना हो।
रंगीन दिल की यही याचना है।
पीताम्बरी वेश मोहक सुहाना।
दैवी मनोहर सदा मुस्कराता।
साधन बना शिष्ट जग को रचाता।
दिखता सहज सत्व अनुपम लुभाना।
सब के हृदय पर यही राज करता।
स्वर्णिम सुखद यह सदा व्योमगामी।
रंगत सहज है सरल योगकामी।
दाता बना स्नेह का नित्य चलता।
इसको न डर है न भय है किसी से।
हिलमिल चले नित्य मानव सभी से।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।