कविता
उन्नति (शुभांगी छंद )
सबकी उन्नति,अपनी उन्नति,जो समझे वह,मानव है।
दुख पहुंचाना,खुश हो जाना,तीर चलाता,दानव है।।
परहित में जो,खुश रहता है,वही दिव्य है,महा पुरुष।
जो दुखवादी, खूनख़राबी,असुर घिनौना,पतित पुरुष।।
समरसता को,जो अपनाये,सभ्य कहाये,देव पुरुष।
काम बनाता,खुश हो जाता,कहलाता वह,दिव्य पुरुष।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।