कविता
स्वाभिमान (त्रिभंगी छंद )
अति स्वाभिमान ही,प्रिय किरीट है,सिद्ध पीठ है,मनहारी।
जो इसकी रक्षा,सदा करेगा,बन जाएगा,अधिकारी।।
जो खुद में जीता,अमृत पीता,अमर वही है,अविकारी।
वह अति सम्मानी,जग में नामी,आत्म भाव में,सुखकारी।।
वह बाहर भीतर,एक समाना ,उत्तम बाना,मस्ताना।
नहिं याचन करता,सबको देता,मधु का न्योता,दीवाना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।