कविता
चला प्रचंड वेग से
चला प्रचंड वेग से रुका नहीं कहीं गुनी।
न अर्थ का प्रभाव था अनर्थ थी कहासुनी।।
भविष्य देखता हुआ मनुष्य आज खो गया।
अलक्ष्य है यहाँ कहाँ सुलक्ष्य आप हो गया।।
गिरा नहीं बढ़े चला सुशांत की तलाश में।
उठा रहा कबीर सा प्रशांत के प्रकाश में।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।