गीतिका
पूजा तथा रसोई में अब शुद्धता कहाँ,
पावन पुनीत वस्तु की उपलब्धता कहाँ।
खाद्यान्न और नीर में अवशिष्ट घुल गया,
मिष्ठान्न और दूध में संबद्धता कहाँ।
बूँदें बरस उठी कहीं दीपक दमक उठे,
वो राग मौन हो गये लयबद्धता कहाँ।
विद्याविभूति प्राप्त कर ,विद्वान बन गये
पर नौजवान व्यक्ति में करबद्धता कहाँ।
विकसित हुए समाज में कानून मौन है,
अब भ्रष्ट न्याय नीति में निष्पक्षता कहाँ।
जगदीश शर्मा सहज