कविता
छिप मईया से उधम छाई।
धमा चौकड़ी खूब मचाई ।
गोल-मोल मनमानी करते,
चौका बासन धरा लुटाई ॥
आटन-वाटन बहुतै.. खेलें।
इक दूजे को.. रोगन पेलें ।
हँस-हँसके लगें किलकारियाँ,
आ भैय्या..कुछ औरहि ठेलें॥
चूक हुयी जो इस गस्ती में ।
गोपाल बाल मन..मस्ती में।
झाँके माँ ..चुपके से खोयी…
मोहित सी..उधमी हस्ती में॥
वत्सला मातु.. औ.. लीलायें।
नित-नवल चारु चपल कथायें।
न्यौछावर भुव-मंडल समस्त…
शिशु-बाल ये..अद्भुत कलायें॥
_______अलका गुप्ता ‘भारती’__