कविता
[03/07, 20:51] Dr.Rambali Mishra: दस्तक
आज हमारा जन्म दिवस है।
देता दस्तक यही दिवस है।।
हर बारिश में यह आता है।
तीन जुलाई को गाता है। ।
दस्तक यह अति उत्तम शुभमय।
जन्म महोत्सव अतिशय मधुमय।।
सालाना दस्तक प्रिय पावन।
मनमोहक सुन्दर स्मृति आवन।।
मधुर अनुभवों का भंडारण।
जग में आने का उच्चारण।।
जन्म दिवस जब दस्तक देता।
बन कर पर्व हृदय हर लेता।।
जाम पिलाता जन्म दिवस है।
प्रेम दिखाता यही सरस है।।
जीवन में जब दस्तक देता।
खुशहाली दे ज्ञान समेता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/07, 15:14] Dr.Rambali Mishra: वैरी पिया
वैरी पिया बहुत दुख देता।
नारि परायी का सुख लेता।।
सीधे मुँह वह नहीं बोलता।
वचन बोल कर जहर घोलता।।
पी शराब वह घर पर आता।
गाली दे उत्पात मचाता।।
कभी प्रेम की बात न करता।
दुश्मन बन कर सदा विचरता। ।
हरदम मार किया करता है।
सीने पर चढ कर रहता है।।
गाली देता बार बार है।
सदा भूत उस पर सवार है।।
मात पिता को गाली देता।
धुत्त नशे में सुख हर लेता।।
घर उसने बर्बाद किया है।
कभी न प्रिय संवाद किया है।।
जब देखो तब ताना मारे।
जजक जज़क कर खाना डारे।।
जीना मुश्किल कर डाला है।
खूनी पतित दुष्ट प्याला है।
पुलिस मारती नहीं सुधरता।
खा कर लात बहकता रहता।।
पा कर पैसा पी जाता है।
गिरता पड़ता घर आता है।।
ऐसा पिय वैरी कहलाये।
चुल्लू भर जल में मर जाये।।
बुरी नजर से देखा जाता।
फिर भी खुद को सभ्य बताता।।
अपनी पत्नी गीला गोबर।
और परायी बहुत मनोहर।।
पत्नी देख सहज गुर्राता।
सदा परायी पर भहराता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/07, 13:13] Dr.Rambali Mishra: लेखनी काव्य प्रतियोगिता
06 जुलाई ,2023
शीर्षक: चला धीरे धीरे
नहीं साथ कोई अकेले सवेरे।
निकल कर चला राह में धीरे धीरे।।
न संबल किसी का न राही सड़क पर।
न असहज हुआ मैं बढ़ा धीरे धीरे।।
अथक श्रम की कूबत सदा मन में पाले।
सहज साहसी सा लगा धीरे धीरे।।
नहीं मन सशंकित नहीं चाल बेढब।
चला जंग लड़ने क्रमिक धीरे धीरे।।
मनोबल सदा उच्च ही हमसफर है।
उसे दिल में रख कर कढ़ा धीरे धीरे।।
भरोसा जिसे है स्वयं आप पर नित।
वही लक्ष्य पाता सही धीरे धीरे।।
निराशा नहीं छू सकी जिस मनुज को।
वही पार पाया भले धीरे धीरे।।
चला जब अकेला नहीं संग कोई।
चला प्रभु स्मरण कर गढ़ा धीरे धीरे।।
सदा देखता शक्ति भीतर छिपी है।
उसे हाथ पर रख पढ़ा धीरे धीरे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/07, 13:16] Dr.Rambali Mishra: चला धीरे धीरे
नहीं साथ कोई अकेले सवेरे।
निकल कर चला राह में धीरे धीरे।।
न संबल किसी का न राही सड़क पर।
न असहज हुआ मैं बढ़ा धीरे धीरे।।
अथक श्रम की कूबत सदा मन में पाले।
सहज साहसी सा लगा धीरे धीरे।।
नहीं मन सशंकित नहीं चाल बेढब।
चला जंग लड़ने क्रमिक धीरे धीरे।।
मनोबल सदा उच्च ही हमसफर है।
उसे दिल में रख कर कढ़ा धीरे धीरे।।
भरोसा जिसे है स्वयं आप पर नित।
वही लक्ष्य पाता सही धीरे धीरे।।
निराशा नहीं छू सकी जिस मनुज को।
वही पार पाया भले धीरे धीरे।।
चला जब अकेला नहीं संग कोई।
चला प्रभु स्मरण कर गढ़ा धीरे धीरे।।
सदा देखता शक्ति भीतर छिपी है।
उसे हाथ पर रख पढ़ा धीरे धीरे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/07, 17:31] Dr.Rambali Mishra: अमृतध्वनि छन्द
24 मात्रा
नहीं जानता राम को,नहीं जानता श्याम।
सिर्फ जानता प्रेम को,जो सच्चा निष्काम।।
राम न जानत,श्याम न मानत,सात्विक भावत।
स्वार्थ भगावत,भला मनावत, अति सुख पावत।।
शुभ चरित्र जिसमें बसे,वही स्वरूप महान।
सदाचार से हीन ज़न,वृषभ सदैव समान।।
सुन्दर मन हो,निर्मल ज़न हो,वह बड़ भागी।
उत्तम कृति हो,प्रिय संस्कृति हो,नित वितरागी।।
पावन उज्ज्वल भाव से,बने सकल संसार।
न्याय प्रकट हो सर्वदा,त्याग भाव हो सार।।
मन में शुचिता,निर्मल सरिता, जग दुखहरिता।
जगमय गंगा,अमृत रंगा,मधु सुख चरिता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/07, 11:07] Dr.Rambali Mishra: सरस भाव
सरस भाव प्रधान जहां बने।
नर पिशाच प्रवृत्ति मिटा करे।
कलुष दृष्टि जले मरती रहे।
मनुज रूप विशाल सदा दिखे।
सरल सभ्य समाज बना करे।
गरल नष्ट विनष्ट हुआ करे।
सहज हो मन उत्तम उच्चतर।
अमर हो प्रिय कर्म फले बढ़े।
दुखद भीड़ घटे मन शांत हो।
समय चक्कर में अनुकूलता।
दृढ़ मनोरथ शुभ्र खिला करे।
सुखद मूल्य लिखे कर रेख को।
दिवस का अवसान कभी न हो।
शुभ दिवाकर तेज बना रहे।
अमर हो इतिहास मनुष्यता।
कुटिल कृत्य समाप्त अनित्य हो।
ललक हो मन में शिव भाव की।
कर निवेदन भूमि तपोवनी।
जगत हो प्रिय सार्थक शब्द सा।
कमल पुष्प सुसज्जित हो धरा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/07, 16:24] Dr.Rambali Mishra: परदेशी बालम (दोहे)
पिया गये परदेश हैं,आती अतिशय याद।
दिल में बसे हुए सदा,रहें सदा आवाद।।
परदेशी बालम हुए,रोजी रोटी प्रश्न।
पिया मिलन होता नहीं,हुआ स्वप्न अब जश्न।।
लाचारी में छोड़ घर,गये बलम परदेश।
लिखा भाग्य में था नहीं,जन्म भूमि प्रिय देश।।
उदर भरण के प्रश्न पर,हर मानव लाचार।
बाहर जाने के लिए, करता विवश विचार।।
राजा भी घर छोड़ कर,जब जाता परदेश।
वह भी बच पाता नहीं,स्वयं भोगता क्लेश।।
जो रहता परदेश में,कभी नहीं खुशहाल।
तरह तरह के कष्ट से,होय सदा बेहाल।।
पी के बाहर गमन से,धनिया दुखी उदास।
चाह रही प्रिय हो सदा,केवल उसके पास। ।
बाहर जाने के लिए,मानव है मजबूर।
रोटी वस्त्र मकान के,लिए बना मजदूर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/07, 17:49] Dr.Rambali Mishra: अनमोल ख़ज़ाना (मरहठा छन्द)
अनमोल ख़ज़ाना,मैंने जाना,यह अक्षय भंडार।
यह गुप्त इलाक़ा,जिसने झांका,देखा यह संसार।।
अद्भुत अवतारी,ज़न मनहारी,अति शीतल यह धाम।
नित इसमें रहते,उत्तम कहते,अवधपुरी के राम।।
इसमें संतोषी,शीतल पोषी,सच्चाई का लोक।
अति गहरा रिश्ता,मधु मानवता,मंगल मूर्ति अशोक।।
न्यायालय प्यारा,मौलिक न्यारा,करे उचित सब काम।
इसमें निर्मलता,अति नैतिकता,पाता मन विश्राम।।
सिद्धांत अनोखा,यहाँ न धोखा,यह अमृत का गेह।
यह मिथिलानगरी ,सावन बदरी,रहते जनक विदेह।।
अति प्रेमिल रचना,सच सुख वचना,स्नेह रत्न भरमार।
जाने जो इसको,माने सबको,पाये खुशी अपार।।
जो जाये भीतर,बने मनोहर,बस जाये घर द्वार।
देखे वह अपना,दैवी सपना,हो जाये उद्धार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/07, 15:12] Dr.Rambali Mishra: सावन पावन मास सुहाना (सवैया )
सावन पावन मास सुहावन दिव्य लुभावन भव्य लगे।
जीत रहा सबका दिल है यह उत्तम मोहक भाव जगे।।
बारिश होय फुहार पड़े पुरुवा झकझोर बहा करता।
जंतु सभी खुशहाल हुए वन मोर सुनृत्य किया करता।।
कोयल बोलत है कुकुहूँ मन मस्त दिखे सुख पावत है।
मेढक गावत गाल फुलाकर लागत ढोल बजावत है।।
पंख पसार उड़े पंखिया जब देखत सुन्दर रोशन को।
बादल देख किसान सुखी अरु संत सुखी लख मोहन को।।
सावन शंकर के दिल का टुकड़ा शिव का मधुरालय है।
धाम महान बना यह माह लगे मधु सावन आलय है।।
अद्भुत सोम स्वयं शिव शंकर रूप धरे शुभ आशिष दे।
बेल चढावत निर्मल नीर गिरावत भक्त सदा वर ले।।
स्वर्ग समान लगे यह सावन बेहद उत्तम भाव भरे।
ईश्वर नीर बने दिखते प्रिय लौकिक प्राकृत रूप धरे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/07, 20:06] Dr.Rambali Mishra: प्रेम का रंग (दोहे )
घूंघट में दुल्हन लगे,जैसे रस शृंगार।
वैसे ही है प्रेम का,मोहक रंग अपार।।
दिव्य सुगंधित महकता,जिमि गुलाब का फूल।
वैसे ही है गमकता,प्रेम रंग अनुकूल।।
आकर्षक हर वस्तु में,प्रेम रंग का भाव।
सात्विक शिष्ट विचार का,है रंगीन स्वभाव।।
पूर्ण समर्पण भाव प्रिय,सुरभित प्रेमिल रंग।
ईश्वरीय यह सृष्टि मधु,कोमल अनुपम अंग।।
सतरंगी यह धनुष जीमि,जल प्रकाश का योग।
विश्व विजेता रंग यह,सर्व भाव संयोग।।
पीत वसन पहने लगे,सुन्दर हर इंसान।
पीताम्बर में कृष्ण का, श्याम वर्ण द्युतिमान।।
लाल रंग में शोभते,राम भक्त हनुमान।
कालेश्वर के रंग में,है शंकर का भान।।
प्रेम रंग अतुलित सहज,सरल तरल मधु स्वाद।
शुद्ध हृदय का विषय यह,कर देता आवाद।।
जिस पर चढता रंग यह,बने राधिका श्याम।
पाता वह अमरत्व को,करे मधुर विश्राम।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/07, 16:13] Dr.Rambali Mishra: सावन सोम शिवालय में (मालती सवैया )
सावन सोम शिवालय में प्रभु शंकर से हमको मिलना है।
कष्ट निवारक संकट मोचन से हर बात सदा कहना है।
आदि अनादि अनंत वही सब के प्रिय रक्षक भव्य वही हैं।
धर्म प्रचारक दुष्ट विनाशक संत सँवारत सभ्य वही हैं।
भक्त शिरोमणि शंभु शिवा प्रिय पर्वत आसन ही उनका है।
जो जपता उनको हिय से वह निश्चित ही बनता उनका है।
निर्भर हो अति निर्भय हो चलते रहना शिव पंथ चलेंगे।
आशिष ही इक संबल है सब त्याग सदैव वहीं टहलेंगे।
कल्प लता इव हों शिव जी अपने जन का शुभ काम करेंगे।
हो अति शीघ्र प्रसन्न सदाशिव अंक भरे सब पाप हरेंगे।
शंकर भाव अमोल रहस्य अबाध निरंकुश दिव्य दिखेगा।
जो शिव सावन सोम व्रती वह उत्तम रूप अनन्य धरेगा।
जाति विहीन सुजाति समर्थ सुसत्य सुनित्य सुशब्द कहेंगे।
वाचन गौरव ग्रंथ करें शुभ पाठ्य विवेचन नित्य करेंगे।
धर्म सनातन मान्य करें सब के हित में ख़ुद कूद चलेंगे।
कर्म तपोवन जीवन कानन में प्रभु आपन वेद लिखेंगे।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।