स्वयंभू
स्वयंभू
जब सारी शक्तियां स्त्री के पास हैं
नहीं है वह अबला उसी का राज है
ज्ञान की देवी मां शारदे है वह
घर से लेकर हर ज्ञान मंदिर में
उसी के सिर पर गुरु का ताज है।
धन धान्य की वहीं तो है लक्ष्मी
हर प्राणी को तो उसी पर नाज़ है
वहीं तो है शक्ति का साकार रूप
शेर उसका वाहन त्रिशूल हाथ है
वह जगत जननी ममतामयी मां
जन्म लेते उस की कोख से अवतार हैं।
सिंधु से जल सोखती हैं किरणें
खेत खलिहान सींचती हैं नदियां
पर्वतों की चोटियों पर मीठा जल
हिमनदियां ही करती संभाल हैं
देख लीजिए हर स्वास्थयालयों में
रोगियों की वहीं करती संभाल हैं।
घर हो या फिर हो घर की रसोई
जहां हाथ लगते करती कमाल हैं
आज देख लीजिए कोई भी मंच
कविता कहानी में मचाती धमाल हैं।
झांसी की रानी लक्ष्मी इंद्रिरा भी
युद्ध के मैदान में कर रही कमाल हैं
सृष्टि या हो ईश्वर की परिकल्पना
ऊर्जा की आभा से मालामाल हैं
जान लें स्त्री कहीं नहीं कमजोर
उसी से पूछा जा रहा हर सवाल है।