कविता
हो कंटकों के जाल पथ में ।
विचलित न हो ऐ धरती पुत्र ।
लक्ष्य से पहले तनिक भी ।
करना नहीं इन्कार पथ को।
सूर्य की भाँति चमक तू ।
फूल की भाँति महक तू।
मार्ग की बाधाओं को अब।
धूल की भाँति उड़ा चल।
चल चमक, चमके ज्यों बिजली ।
लक्ष्य जीत का ले बाहुबली ।
संघर्षों की आहुति ये जीवन ।
पाश से तू बाँध ले मन ।
उत्कंठा हो लक्ष्य की हरदम।
डिगा न पाये कोई तेरे कदम ।
विजित हो कर इन्द्रजीत तुम
मानस मन में दो भर प्रीत तुम
Copyright @मनीषा जोशी मनी ।