कविता
[15/04, 21:09] Dr.Rambali Mishra: हृदय गर्भ में ….
हृदय गर्भ में प्रीति का, मत पूछो कुछ हाल।
कौन समझ पाया उसे, पकड़ न पाया चाल।।
यह जगती मतिमंद अति, क्या जानेगी प्रीति।
करते सब उपहास हैं, यहीं जगत की रीति।।
बैठी रोती प्रीति है, दर्द न जाने कोय।
सब भूखे हैं काम के, नहीं शांत मन होय।।
गंगोत्री जल सी सदा, निर्मल प्रीति अथाह।
हृदय अक्ष पर नित चले, यही प्रीति की राह।।
सृष्टि वाचिका मधु महक, सौम्य शील शालीन।
अति सम्मानित स्नेहमय, अमरावती कुलीन।।
भोर किरण सी रूपसी, सदा चमकता देह।
महा सिंधु की लहर सी, दिव्य भाव ही गेह।।
सहज प्रीति की साधना, हो श्रद्धा विश्वास।
सात्विक आदर भाव से, करो प्रीति की आस।।
विषय वस्तु यह आत्म का, अति पावन विज्ञान।
इसे समझ सकता वही, जिसे आत्म का ज्ञान।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/04, 15:46] Dr.Rambali Mishra: प्रीति रसायन (दोहा मुक्तक)
प्रीति रसायन में मधुर, जीवन का आनंद।
चखने वाले हैं विरल, धरती पर कुछ चंद।।
इसका स्वाद जिसे मिला, हुआ वही खुशहाल।
जो इससे वंचित रहा, दिखा परम मतिमंद।।
प्रीति बहुत दुर्लभ यहां, अति दुर्गम संयोग।
इसमें दैवी चेतना, परमानंदी योग।।
बड़े भाग्य से प्रीति का, मिलता आशीर्वाद।
जन्म जन्म के पुण्य से, मिले सरस यह भोग।।
जिसे प्रीति की चाह हो, करे सत्य का जाप।
तपे तपाये आप को, बिना किए संताप।।
उर पावन मन शुद्धि का, समीकरण साकार।
प्रीति निकट है द्वार पर, देख बने निष्पाप।।
प्रीति बुलाती दिव्य को, देखो बने सुजान।
नहीं देख सकता इसे , मानव मन अज्ञान।।
अति प्रिय अतिशय सरल यह, बहुत भव्य अनमोल।
इसको पाता है वही, जी दिल का धनवान।।
प्रीति रत्न भंडार है, स्वर्ण हीर की ढेर।
इसको पाने के लिए, करो कभी मत देर।
साहस शिव उत्साह से, मिल जाती है राह।
जा कर हृदय प्रदेश में,, सतत प्रीति को हेर।।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[17/04, 15:32] Dr.Rambali Mishra: अधूरी मुलाकात (भुजंगप्रयात छंद)
मापनी 122 122 122 122
अधूरी मुलाकात में दर्द ऐसे।
मिले राह में स्वप्न सा किंतु जैसे।
हुआ खुश बहुत मन किनारा मिलेगा।
महकता वदन का सितारा खिलेगा।
सहारा दिखा शांत होता दिखा मन।
लगा जान ऐसा मिला हो गिरा धन।
मिला प्रेम का पुष्प अद्भुत निराला।
दिखा हाथ में आ गया स्वर्ण प्याला।
नजर से नजर मिल गई मस्त मन था।
मुखाकृति रसीली चमकदार तन था।।
तुझे देखते ही दिखा स्वर्ग आगे।
सहज ही सकल दुख स्वयं शीघ्र भागे।
नहीं टिक सका दृश्य ओझल हुआ जब।
मुलाकात आधी अधूरी लगी तब।
उदासी निराशा लगी हाथ मेरे।
हुआ अस्त सूरज सबेरे सबेरे।
लगी जिंदगी एक स्वप्निल सफर है।
अजनबी हुआ आज सारा शहर है।
नहीं पूर होती तमन्ना कभी भी।
न होती मुलाकात पूरी कभी भी।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/04, 16:51] Dr.Rambali Mishra: कर्म गति
कर्म बीज अद्भुत जगत, का करता निर्माण।
खट्टा मीठा स्वाद में, बसता इसका प्राण। ।
सुख देता दुख भी यही, जैसी हो करतूत।
रचता यही सपूत है, रचता यही कपूत। ।
इस सारे संसार में ,सिर्फ बीज का खेल।
भाव बीज अनुसार ही, होते सबके मेल। ।
बीज गिरे हैं भूमि पर, सुखद दुखद दो यार।
अपनी मर्जी से करो ,चाहे जिससे प्यार। ।
मन के निर्मल भाव में,रहता है सुख बीज।
निर्मम दूषित मन हृदय, में विकृत हर चीज़। ।
मन से चुनता आम जो, पाता अमृत स्वाद।
जिसको काँटे प्रिय लगें, वह होता बर्बाद। ।
सुख के दुख के बीज ही, जीवन के दो पंथ।
एक ब्रह्म का लोक है,एक असुर का ग्रंथ। ।
जिसकी जैसी भावना, उसकी वैसी राह।
दिव्य भाव शीतल करे, दुष्ट भाव में दाह। ।
पर उपकारी बीज से ,मिलता है अमरत्व।
रक्त बीज दानव दुखद ,में रहता विष तत्व। ।
इस सारे संसार में , हैं केवल दो लोक।
इक में अमृत कलश है ,इक में हार्दिक शोक ।।
चुन लो अमृत बीज को ,बन जा सहज महान।
पूजनीय बन जगत में, कहलाना विद्वान। ।
साहित्यकार डॉ- रामबली मिश्र
[20/04, 09:22] Dr.Rambali Mishra: फौजी (अमृतध्वनि छंद)
मात्रा भार 24
फौजी रक्षक देश का, हो उसका सम्मान।
खून पसीना एक से, करे राष्ट्र पर ध्यान। ।
वह रक्षक है, संरक्षक है, सम्मानित है।
सदा एक रस, दे कर सर्वस,प्रिय स्थापित है। ।
फौजी करता रात दिन, सहज राष्ट्र से प्रेम ।
वतनपरस्त बना सदा, पालन करता नेम।।
राष्ट्र वचन कह, चलता हरदम, चौकन्ना हो।
शौर्य पराक्रम, त्वरित वीरता, संपन्ना हो। ।
अमर वीर फौजी परम, में उत्साह अपार।
सदा समर्पण भाव से, करे राष्ट्र से प्यार। ।
सतत पराक्रम, दिखलाता हैं, बना यशस्वी।
कभी न रुकता, चलता रहाता ,घोर तपस्वी।।
वैरी को ललकारना,है फौजी का काम।
दौड़ दौड़ कर मारता, करता काम तमाम। ।
चक्र सुदर्शन, लिए हाथ में ,वह चलता है।
लक्ष्य देखता ,आगे बढ़ता,वह रहता है। ।
धन्यवाद का पात्र है, हर फौजी का नाम।
बिन फौजी के देश की,दिखती प्रति पल शाम।।
धन्य धन्य है, फौजी भाई,अमर सदा है।
राष्ट्र विधाता ,जीवन दाता, सुखद सदा है। ।
साहित्यकार डॉक्टर रामबली मिश्र
[20/04, 16:41] Dr.Rambali Mishra: याचिका
मापनी २1 21 21 21 21 21 212
याचना यही सभी करें सुवृद्धि मान में।
जागते रहें सभी अशोक सिद्धि ज्ञान में।
दंभ खंभ तोड़ तोड़ शांति राजदूत हों।
द्वेष भाव छोड़ छोड़ स्नेह क्रांति पूत हों।
जीत हार एक मान मस्त मस्त जिंदगी।
स्वस्थ भूमिका दिखे मिटे सदैव गंदगी।
न्याय की गुहार पर सभी मनुष्य चेत हों।
साधु संत जागरण मृतक समान प्रेत हों।
पूजनीय सत्य भाव झूठ वृत्ति दूर हो।
दर्शनीय शोभनीय धर्म दृष्टि नूर हो।
बार बार याचिका विचारणीय विंदु हो।
धारदार पालिका जनार्दनीय इंदु हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र
[21/04, 18:15] Dr.Rambali Mishra: बेखुदी (दोहा मुक्तक)
वहीं बेखुदी में करे, सदा निरर्थक बात।
सार्थक तथ्यों की सहज, हो जाती है रात। ।
दिल दिमाग से शून्य वह, करता सारा काम।
बिन सोचे बकता रहे, बिन जाने औकात। ।
झटके में वह कह चले, बिन जाने परिणाम।
सबकुछ हल्के में लिए ,करता रहता काम। ।
नहीं ज्ञान है अंत का, लगता लापरवाह।
चाहे जैसा कर्म हो, किंतु चाहता नाम। ।
अज़ब ग़ज़ब है बतकही, अति विचित्र हर चाल ।
लोग कहेंगे क्या उसे, इसका नहीँ मलाल ।।
अपनी बातेँ बोलकर ,हो जाता है मौन।
उसे देख ऐसा लगे, आय़ा हो ननिहाल। ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र
[22/04, 15:34] Dr.Rambali Mishra: प्यार की चाल (दोहा मुक्तक)
प्यार किया जाता नहीं ,हो जाता है प्यार।
यह तो दैवी शक्ति है, सकल सृष्टि आधार। ।
इसका पूजन हृदय से, जो करता है दिव्य।
वहीं पात्र बनता सहज ,पा जाता अधिकार। ।
रोम रोम में य़ह बसे, रहता बेपरवाह।
जीव मात्र के सरस मन, की यह सात्विक चाह। ।
नहीं किसी से मांगता,इसका त्याग स्वभाव।
अतिशय ऊर्जावान यह, इसका मूल अथाह। ।
गोर वदन कामुक नयन ,अधरों पर मुस्कान।
मस्तानी मोहक अदा, सकल लोक पर ध्यान। ।
सबसे ऊपर बैठ कर, सदा चलाता राज।
नित्य छबीला रसिक अति, प्रिय सुन्दर यशमान। ।
चाल निराली मस्त मधु, रस प्रधान युवराज।
इसके कारण ही चले ,जगती का हर काज। ।
जिसने पाया रत्न यह, वही हुआ मनमस्त ।
स्वाभिमान का सूर्य यह,महादेव का ताज। ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र
[23/04, 17:48] Dr.Rambali Mishra: पीहर
गमकता सदा स्वर्ग पीहर सुधर घर।
यही मात पित का बसेरा मनोहर। ।
यही धाम मोहक सुहाना निराला।
यहीं से कली का खिले पुष्प प्याला। ।
सभी भ्रात भाभी बहुत याद आये।
कभी भूल पाते न बचपन बिताये। ।
सदा मन मचलता उछलता फड़कता ।
जनम स्थान पीहर सुनिश्चित चहकता। ।
सहेली सखी संग खेले हंसे हैं।
सभी आज दिल में उतर कर बसे हैं। ।
बहुत याद आती नहीं भूल पाते।
न चाहे हमेशा वही याद आते। ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्रा