कविता
कविता भी तो एक स्त्री ही है
जिसने जैसा चाहा वैसे
ही शब्दों में उकेर दी
जाती है सबके मनोभावों सी
मुखरित हो जाती है
स्वरचित
कविता भी तो एक स्त्री ही है
जिसने जैसा चाहा वैसे
ही शब्दों में उकेर दी
जाती है सबके मनोभावों सी
मुखरित हो जाती है
स्वरचित