कविता
टीस, आंसू,खुशी, हंसी
वैश्विक हैं अनुभूति, अभिव्यक्ति
हर जगह कुत्ता दुम हिलाता है
शेर गुर्राता है, सांप डसता है
कोयल कूकती है,मोर नाचता है।
किसके आदेश पर रेखाएं खींची?
शासन वृत्ति भी तो वैश्विक है
वैश्विक है मुक्त होने की इच्छा भी।
– मोहित