कविता
मुट्ठी में बंद है
भाग्य का
लेखा – जोखा,
अपनी – अपनी तक़दीर लिए
सब इस दुनिया में फिरे।
कौन कितना पाएगा?
कर्म ये सब बताएगा।
छल – कपट ,प्रपंच में
काहे सब पड़े?
प्रेम,मानवता से
जीवन ये चले।
मुट्ठी बंद करके आया था,
खाली हाथ चला जाएगा।
बैरागी संसार से,
कभी दिल न लगे।
वरना
मोह – माया में फंस जाएगा।
-आकिब जावेद