यारी
क्या ऐसी यारी होती है ?
इतनी गद्दारी होती है
किसको अपना मान लिया,
मन में अपने ही ठान लिया।
दो गाड़ी पर पैर रखे,
क्या यही सवारी होती है ? ॥
विश्वास किसी पर न करिये,
बस ध्यान प्रभू का ही धरिये।
छिटक गये कितने अपने,
उम्मीद ये न्यारी होती है।
क्या ऐसी यारी होती है..?
दादे बाबों का कहा सुना,
न माना उनका कढा बुना।
छुपकर के जैसे सीखे तुम,
वैसी तैयारी होती है।।
“हाँ । ऐसी यारी होती है,
न ये गद्दारी होती है…!
©® अमरेश मिश्र ”सरल”